December 6, 2024
Veer Ras Ka Udaharan

वीर रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण – Veer Ras Ka Udaharan

Veer Ras Ka Udaharan :- जैसा की हम सभी जानते है, की वीर रस आचार्य भरत मुनि जी के द्वरा रस को काव्य की आत्मा निर्धारित की गयी है, साथ ही वीर रस हिंदी व्याकरण की सबसे महत्वपूर्ण विषयो में से एक है, क्योकि यह हमारी रोजमर्रा के कामो को भी संबोधित करता है।

ऐसे में भारत के उन सभी विद्यार्थियों को वीर रस के बारे में जानना जरूरी है, की वीर रस की परिभाषा क्या होती है ? तथा वीर रस के उधाहरण तो अगर आप भी वीर रस से जुड़े सभी तरह के जानकारी पाने में अभी तक असफल है, तो यह लेख बिलकुल आपके लिए लिखी गयी है, तो चलिए शुरू करते है।


वीर रस का उदाहरण – ( Veer Ras ka udaharan )

दोस्तों वीर रस के उधाहरण जानने से पहले आपको वीर रस की परिभाषा को जानना जरूरी है, क्योकि ऐसे में हम उस विषय के बारे में अच्छे से ज्ञान की प्राप्ति कर पाएंगे जिससे हमारी समझने की शक्ति में उन्नति होगी, तो आइये सबसे पहले वीर रस के परिभाषा को जानते है |


वीर रस क्या होता है ?

रस कई प्रकार के होते हैं तथा उन्हीं रसों में से एक है, वीर रस। वीर रस का स्थाई भाव उत्साह होता है, किसी काव्य रचना को पढ़कर या फिर कोई ऐसा दृश्य देखकर हमारे मन में या पाठक या दर्शक के मन में वीरता एवं उत्साह जैसे स्थाई भाव उत्पत्ति होती है, तो यही स्थाई भाव जब विभाव अनुभव एवं संचारी भाव के साथ संयोग करते है तो वीर रस उत्पत्ति होती है।

यदि हम सरल शब्दों में कहें, तो जब भी हम किसी काव्य रचना को पढ़ते हैं या फिर कोई ऐसा दृश्य देखते हैं, जिसे देखकर या फिर पढ़कर हमारे मन में वीरता जैसी या उत्साह जैसी अनुभूति प्रतीत होती है, तो इसी उत्साह या अनुभूति को वीर रस कहते हैं।

Veer Ras Ka Udaharan ( उदाहरण ) :-

  • सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानों मुझे,

यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे।

है और कि तो बात क्या, गर्व मैं करता नही,

मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नही.

  • वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।

हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,

ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो

तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं

वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।

  • धनुष उठाया ज्यों ही उसने,

और चढ़ाया उस पर बाढ़

धारा सिंधु नभ सहसा कापें

विकल हुए जीवो के प्राण

  • बातन बातन बतबढ़ होइगै, औ बातन माँ बाढ़ी रार,

दुनहू दल मा हल्ला होइगा दुनहू खैंच लई तलवार।

पैदल के संग पैदल भिरिगे औ असवारन ते असवार,

खट-खट खट-खट टेगा बोलै, बोलै छपक छपक तरवार।

  • बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

  • ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।

हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥

देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।

पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये।

  • जय के दृढ विश्वासयुक्त थे दीप्तिमान जिनके मुखमंडल

पर्वत को भी खंड-खंड कर रजकण कर देने को चंचल

फड़क रहे थे अतिप्रचंड भुजदंड शत्रुमर्दन को विह्वल

ग्राम ग्राम से निकल-निकल कर ऐसे युवक चले दल के दल

  • सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं,

कौतता है कुण्डली मारे समय का व्याल

मेरी बाँह में मारुत, गरुण, गजराज का बल है।

  • लेकिन अब मेरी धरती पर जुल्म न होंगे

और किसी अबला पर अत्याचार न होगा।

अब नीलाम न होगी निर्धनता हाटों में,

कोई आँख दीनता से बीमार न होगी।

  • साजि चतुरंग सैन अंग उमंग धारि

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।

भूषन भनत नाद बिहद नगारन के

नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं॥

  • फिरे द्रौपदी बिना वसह, परवाह नहीं है।

धन वैभव सुत राजपाट की चाह नहीं है ।।

पहले पाण्डव और युधिष्ठिर मिट जायेंगे।

तदन्तर ही दीप धर्म के बुझ पायेंगे।।

  • भामिनि देहुँ सब लोक तज्यौ हठ मोरे यहै मन भाई।
  • लोक चतुर्दश की सुख सम्पति लागत विप्र बिना दुःखदाई

जाइ बसौं उनके गृह में करिहौं द्विज दम्पति की सेवकाई।

तौ मनमाहि रुचै न रुचै सो रुचै हमैं तो वह ठौर सदाई ।

  • प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,

कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को।

  • लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,

कहाँ लौं बखान करों तेरी कलवार कों

  • लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी,

रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल को

  • क्रुद्ध दशानन बीस भुजानि सो लै कपि रिद्द अनी सर बट्ठत

लच्छन तच्छन रक्त किये, दृग लच्छ विपच्छन के सिर कट्टत

  • सौमित्रि से घननाद का रव अल्प भी न सहा गया।

निज शत्रु को देखे विना, उनसे तनिक न रहा गया।

रघुवीर से आदेश ले युद्धार्थ वे सजने लगे ।

रणवाद्य भी निर्घाष करके धूम से बजने लगे।

  • निकसत म्यान तें मयूखैं प्रलैभानु कैसी,

फारैं तमतोम से गयंदन के जाल कों।

  • फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी।

निज जन्मभू के मान में, चढ़ मुण्ड की माला उठी।

  • सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं

कौतता है कुण्डली मारे समय का व्याल

मेरी बाँह में मारुत, गरुण, गजराज का बल है.


FAQ,S :- 

Q1. वीर रस की परिभाषा क्या है ? OR Veer Ras Ka Udaharan

Ans :- जब किसी काव्य या रचना को पढ़कर हमारे मन में उत्साह या वीरता का स्थाई भाव उत्पन्न होता है,
तो ऐसे ही वीर रस खाते हैं।

Q2. वीर रस का स्थाई भाव क्या है ?

Ans :- वीर रस का स्थाई भाव उत्साह होता है।

Q3. वीर रस के दोहे

Ans :- मतवालो जोबन सदा, तूझ जमाई माय। पड़िया थण पहली पड़ै, बूढ़ी धण न सुहाय॥

Q4. रौद्र रस का उदाहरण

Ans :- श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे। सब शोक अपना भूल कर, करतल युगल मलने लगे ।।

Q5. वीर रस कितने प्रकार का होता है ?

Ans :- आचार्य भरत मुनि के के अनुसार वीर रस तीन प्रकार का होता है।

निष्कर्ष :-

हम आप सभी लोगों से उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारे द्वारा लिखा गया आज का यह महत्वपूर्ण लेख ( Veer Ras Ka Udaharan, वीर रस का उदाहरण ) अवश्य ही पसंद आया होगा। आज के इस लेख में हमने आपको वीर रस से संबंधित जानकारियां प्रदान कराई है।

यदि आपका हमारे द्वारा लिखा गया यह महत्वपूर्ण लेख Veer Ras Ka Udaharan पसंद आया हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना बिलकुल भी ना भूले और यदि आपके मन में इस लेख को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या सुझाव है, तो कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं।


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