May 10, 2024
Tulsidas Ke Guru Kaun the

तुलसीदास के गुरु कौन थे ? – Tulsidas Ke Guru Kaun the

Tulsidas ke guru kaun the :- महाकवि तुलसीदास जी को आज के समय में लगभग सभी लोग जानते हैं और हम सभी तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई है, ग्रंथ को भी पढ़ते हैं। लेकिन कई लोग जानना चाहते हैं कि Tulsidas ke guru kaun the ?

इसलिए आज के इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करने वाले हैं और यह जानने वाले हैं, कि tulsidas ke guru kaun the ? साथ ही हम तुलसीदास जी के गुरु का जीवन परिचय भी जानेंगे। तो आइए बिना देरी के लेखक को शुरू करते हैं।


तुलसीदास के गुरु कौन थे ? – Tulsidas Ke Guru Kaun the

Tulsidas ke guru ka naam नरहरी दास था। इन्हें हम श्री नरहर्यानन्द जी के नाम से भी जानते हैं। पहले तुलसीदास जी सामान्य इंसानों की तरह ही जीवन व्यतीत करते थे। लेकिन एक बार जब तुलसीदास जी अपने पत्नी के प्रेम में उनके पीछे-पीछे ससुराल चले गए तो उनकी पत्नी ने उन्हें ज्ञान का बोध कराया था।

उनकी पत्नी ने कहा था कि इस शरीर से प्रेम क्या करना जो कुछ समय में नष्ट हो जाएगा अगर आप इसका आधा प्रेम भी राम नाम से करते तो आपको अभी तक भगवान मिल गए होते। तो इसी समय से तुलसीदास जी तपस्या करने चले गए और वहीं पर इनकी मुलाकात नरहरी दास बाबा से हुई।

नरहरी दास जी ने तुलसीदास जी को माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को अपना शिष्य बनाया था। इसे बनाने के साथ-साथ इन्होंने एक अनुष्ठान भी किया था।

हम आपको यह भी बता दे कि जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ था तो उनके मुंह से सबसे पहले राम शब्द निकला था। इसलिए उनका रामबोला रखा गया था। लेकिन जब नरहरी दास जी ने तुलसीदास जी को अपना शिष्य बनाया तो उन्होंने रामबोला का नाम तुलसीदास रखा।


नरहरी दास जी कौन थे ?

तो आइए अब हम नरहरी दास जी का जीवन परिचय भी जान लेते हैं। तो नरहरी दास जी एक गुरु ही नहीं बल्कि कवि भी थे जिन्होंने कई हिंदी साहित्य में काव्य खंड लिखा था। हालांकि नरहरी दास जी के काव्य खंड इतने अधिक प्रचलित नहीं है।

नरहरी दास जी का जन्म रायबरेली जिले में हुआ था जो कि उत्तर प्रदेश में स्थित है। इन के गांव का नाम पाखरौली था। नरहरी दास जी का संपर्क कई शासकों के साथ था लेकिन अकबर ने इनको सबसे ज्यादा गुरु का महत्व दिया था।

नरहरी दास जी ने भी अपने गुरु से शिक्षा ली थी और इन के गुरु का नाम रामानंद था। नरहरी दास जी भी कबीरदास, नरहर्यानन्द, इत्यादि महान कवियों के साथ शिक्षा प्राप्त की थी।

तो इस तरह से कबीर दास जी के गुरु का नाम भी रामानंद था। नरहरीदास का पहले नाम नरहर्यानन्द था और रामानंद से शिक्षा लेने के बाद इनका नाम नरहरिदास हो गया।

बाद में नरहरी दास जी तुलसीदास जी के गुरु 1532 ईस्वी से लेकर 1623 ईसवी तक रहे।


नरहरी दास जी की रचनाएं कौन सी हैं ?

नरहरी दास जी के मुख्य रूप से तीन ग्रंथ सबसे ज्यादा प्रचलित हैं, जिनके नाम इस प्रकार है।

  • रुक्मणी मंगल
  • कवित्त संग्रह
  • छप्पय नीति

नरहरिदास मुख्य रूप से ब्रजभाषा के कवि थे और इन्हें संस्कृत भाषा और फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था। इसलिए इन्होंने अपनी अधिक रचनाएँ इसी भाषा में लिखी हैं।


तुलसीदास जी का जीवन परिचय | Tulasidas ka Jivan Parichay

तुलसीदास जी के गुरु के बारे में जानने के पश्चात आइए हम तुलसीदास जी की जीवनी को भी समझ लेते हैं।

तुलसीदास जी का जन्म सन 1511 में हुआ था। इनके जन्म स्थान के बारे में कई विवादे चलती है। जैसे कुछ लोगों का मानना है कि इनका जन्म राजापुर में हुआ था। कुछ विद्वानों का मानना है, कि इनका जन्म चित्रकूट में हुआ था।

इसके अलावा तुलसीदास जी ने अपने जन्म लेते ही सबसे पहले राम नाम का उच्चारण किया था इसलिए उनके माता-पिता ने इनका नाम रामबोला रख दिया था। उसके बाद जब तुलसीदास जी ने अपने गुरु नरहरी दास जी से शिक्षा प्राप्त की तो उनके गुरु ने इनका नाम तुलसीदास रख दिया।

तुलसीदास जी ने अपने जीवन में भगवान हनुमान और भगवान श्री राम जी से भी भेंट की थी। सबसे पहले तुलसीदास जी को एक प्रेत-आत्मा ने आकर हनुमान जी का पता बताया। और बाद में तुलसीदास जी ने हनुमान जी से श्री राम से मिलने की याचना की।

तब ऐसे में हनुमान जी ने तुलसीदास जी को श्री राम जी का पता बताया। इसलिए तुलसीदास जी हराने के लिए चित्रकूट पहुंच गए और रामघाट पर ही तपस्या करने लगे। ऐसे में एक दिन उन्हें दो राजकुमार घोड़े से आते हुए दिखाई दे रहे थे।

लेकिन तुलसीदास जी उन्हें पहचान नहीं सके। बाद में श्री राम भगवान एक बार बाल रूप में भी प्रकट हुए और तुलसीदास जी से आकर मिले और कहा कि क्या आप हमें चंदन घिस कर दे सकते है।

इतने में हनुमान जी ने सोचा कि कहीं तुलसीदास जी फिर से श्री राम को पहचान ना पाए इसीलिए उन्होंने एक दोहा कहा कि

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर,

तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर

तुलसीदास जी का दोहा सुनते ही बाल रूप में आए श्री राम को पहचान गए और अपनी सुध-बुध भूल गए।


तुलसीदास जी के द्वारा रामचरितमानस की रचना

फिर बाद में तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना करने की सोची। और उन्होंने यह रचना रामायण से प्रेरणा लेकर की थी। इसकी रचना करने में तुलसीदास जी को 2 वर्ष 7 महीने और 26 दिन लगे और फिर यह रचना राम विवाह के दिन संपूर्ण हुई।


FAQ’S :-

Q1. तुलसीदास के कितने गुरु थे ?

Ans - तुलसीदास जी के केवल एक ही गुरु थे, जिनका नाम श्री नरहरी दास जी था।

Q2. नरहरी दास के गुरु कौन थे ?

Ans - नरहरी दास जी के गुरु रामानंद थे। और रामानंद जी ही कबीर दास जी के भी गुरु थे।

Q3. तुलसीदास के पिता का नाम क्या था ?

Ans- तुलसीदास जी के पिता का नाम पंडित आत्माराम दुबे था।

Q4. तुलसीदास के गुरु निम्न में से कौन थे – रामानंद, अनंतानंद, नरहरिदास, सुखानंद ?

Ans- इन सभी विकल्पों में से तुलसीदास के गुरु का नाम नरहरिदास बाबा है।

निष्कर्ष :- 

आज के इस लेख में हमने जाना कि तुलसीदास के गुरु कौन थे ? उम्मीद है, कि इस लेख के माध्यम से आपको तुलसीदास जी के गुरु के नाम के बारे में जानकारी मिल पाई होगी।

यदि आप इसी प्रकार की और भी धार्मिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं या किसी अन्य विषय पर जानकारी पाना चाहते हैं तो हमें कमेंट करके बताएं। अगर आपको लेख अच्छा लगा हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।


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