Arjun ke pita ka naam :- अर्जुन को गांडीव धारी धनुर्धर भी कहा जाता है, यह एक वीर और पराक्रमी योद्धा थे। अर्जुन के महाभारत काल के किस्से आज भी हमें पढ़ने तथा सुनने को मिलते हैं, जिनमें उनकी वीरता देखने को मिलती है।
गुरु द्रोणाचार्य जी के एकमात्र परम शिष्य अर्जुन रहे हैं, तथा इन्हीं के द्वारा इन्होंने अस्त्र-शस्त्र की विद्या को हासिल किया है। ऐसे में अगर आप जानना चाहते हैं, कि Arjun ke pita ka naam kya tha ?
तो आज के इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे, और जानेंगे की Arjun ke pita ka naam kya tha ? साथ ही अर्जुन से जुड़ी संपूर्ण जानकारी आज हम लेख के माध्यम से हासिल करेंगे।
अर्जुन के पिता का नाम क्या था ? – Arjun ke pita ka naam kya tha.
अर्जुन के पिता का नाम महाराज पांडु था। लेकिन इंद्र देव के आशीर्वाद से अर्जुन का जन्म हुआ था इसलिए अनेक स्थान पर अर्जुन के पिता के रूप में इंद्र देव का भी नाम मिलता है, युधिष्ठिर ,भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव यह सभी भाई हैं, लेकिन अर्जुन इनके मंझले भाई थे।
अर्जुन के जन्म से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी
माता कुंती अर्जुन की माता है। माता कुंती ने दुर्वासा ऋषि की सेवा की थी, जिसके चलते ऋषि दुर्वासा जी ने उन्हें एक मंत्र प्रदान किया था, और साथ में उन्हें कहा कि इंद्रदेव का आव्हान करना है।
अब जैसे ही माता कुंती ने दुर्वासा ऋषि के द्वारा बताई गई प्रक्रिया को पूरा किया। उसके बाद इंद्रदेव के आशीर्वाद से कुंती को अर्जुन महाप्रतापी तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ।
अर्जुन के 12 नाम क्या है ?
महाभारत के वीर योद्धा महारथी प्रतापी अर्जुन को अनेक नामों से जाना जाता है, जिन्हें नीचे बताया गया है।
- धनंजय
- पार्थ
- कौंन्तेय
- गुडाकेश
- कपिध्वज
- किरीटी
- भरत या भरत श्रेष्ठ
- परन्तप
- पुरुषर्षभ
- फाल्गुन
- महाबाहु
- सब्यसाची
अर्जुन की दक्षताएं
अर्जुन ने अपना गुरु द्रोणाचार्य जी को बनाया तथा उनसे धनुर्विद्या सीखी। अर्जुन चाहते थे, कि वह दुनिया के सबसे बड़े धनुर्धारी बने इसलिए उन्होंने दिन के साथ-साथ रात में भी बाण चलाने का प्रयास किया। आज एकलव्य के बाद सबसे बड़े धनुर्धारी में अर्जुन का ही नाम आता है।
जब भी गुरु तथा भक्त का नाम लिया जाता है तो सबसे बड़ा गुरु भक्त अर्जुन को ही बताया जाता है। एक बार गुरु द्रोणाचार्य जी ने अपने सभी शिष्यों से कहा कि पेड़ पर बैठी नकली चिड़िया की आंख में निशाना लगाना है।
सभी ने अपना प्रयास किया लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया तथा वही अर्जुन ने चिड़िया की आंख में निशाना लगाकर सफलता हासिल की।
महाभारत के युद्ध में अर्जुन का योगदान
महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने युद्ध भूमि पर अनेक सारे वीर योद्धाओं को हराकर पांडवों को महाभारत के युद्ध में जीत हासिल करवाई थी। यहां तक कि महाभारत के युद्ध में पांडवों के साथ श्री कृष्ण जी का होना भी अर्जुन के कारण ही था। अर्जुन जब अपने परिजनों को सामने देखकर युद्ध करने से घबरा गए।
और युद्ध से पीछे हटने लगने लगे उस समय श्री कृष्ण जी के द्वारा उन्हें भागवत गीता जी का ज्ञान प्रदान किया गया, जिसमें उन्होंने अपना विराट रूप बनाया हुआ था तथा वह बोल रहे थे मैं काल हूं, सारे संसार का सर्वनाश करने के लिए आया हूं। भागवत गीता का ज्ञान प्रदान करके उन्होंने अर्जुन को समझाया तथा युद्ध के लिए तैयार किया।
अर्जुन के पास अनेक सारे दिव्यास्त्र मौजूद थे, जिसके चलते उन्होंने कई महारथियों को मार गिराया जिनमें दीर्घायु कृतवर्मा जैसे महारथी शामिल थे।
अर्जुन पिछले जन्म में क्या थे ?
पौराणिक ग्रंथों को अगर माना जाए तो उनके अनुसार अर्जुन जी अपने पिछले जन्म में नर नारायण के भाई रहे थे तथा उस समय यह दो भाई किसी असुर को मारने के लिए जन्में थे।
इसी प्रकार अन्य पौराणिक ग्रंथों में इनके और भी पिछले जन्म के बारे में जानकारी मिलती है। कि किस तरह इन्हें हमेशा किसी ना किसी उद्देश्य को लेकर जन्म मिलते रहे हैं।
अर्जुन की धर्म पत्नी का क्या नाम था ?
अगर हम महाभारत की कथा की बात करें तो महाभारत की कथा में अर्जुन की धर्मपत्नी का नाम द्रोपदी मिलता है। साथ ही में जानकारी मिलती है कि इनकी 3 पत्नियां और भी थी जिनका नाम उलुपी, सुभद्रा, और चित्रागंदा था।
अर्जुन ने अपना शिष्य धर्म कैसे निभाया ?
अर्जुन ने अपना शिष्य धर्म बखूबी निभाया है प्रारंभ से ही अर्जुन के गुरु गुरु द्रोणाचार्य जी उनकी बुद्धिमता तथा निष्ठा को लेकर काफी आश्चर्यचकित थे। इन सभी को देखते हुए गुरु द्रोणाचार्य जी ने कहा था कि वह अर्जुन को सबसे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाएंगे।
अर्जुन ने एक बार अपने गुरु के जीवन की रक्षा की अर्जुन ने अपने गुरुदेव गुरु द्रोणाचार्य जी को मगरमच्छ से बचाया था। यहीं पर उन्होंने सबसे पहले अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था और अर्जुन ही था जो कि अपने गुरुदेव द्रोणाचार्य जी को भीष्म पितामह तक लेकर गया था।
तत्पश्चात द्रोणाचार्य जी को भीष्म पितामह जी के द्वारा पांडवों तथा कौरवों की शिक्षा के लिए चुना गया था तो उन्हें कहा था कि अब आप ही इन्हें शिक्षा देंगे।
गुरु द्रोणाचार्य जी के द्वारा जितने भी शिक्षाएं अर्जुन को प्रदान की गई उनका इस्तेमाल करना अर्जुन को बखूबी आता था जिस वजह से वह एक श्रेष्ठ शिष्य थे।
एक बार गुरु द्रोणाचार्य जी ने अपने शिष्यों से कहा किस पेड़ पर बैठी नकली चिड़िया की आंख में आपको निशाना लगाना है। लेकिन जब कोई भी निशाना ना लगा सका तो अर्जुन ने निशाना लगा कर दिखाया और इस प्रकार उन्होंने दिखाया कि उन्हें गुरु की विद्या का इस्तेमाल करना बखूबी आता है।
FAQ’S :-
Q1. अर्जुन का जन्म स्थल क्या था ?
Ans- हस्तिनापुर के जंगल में अर्जुन का जन्म हुआ था।
Q2. अर्जुन के कितने पुत्र थे ?
Ans- अर्जुन के 4 पुत्र थे।
Q3. अर्जुन के कितने नाम है ?
Ans- अर्जुन के पूरे 12 नाम है।
Q4. अर्जुन की माता का नाम क्या हैं ?
Ans- कुंती
निष्कर्ष :-
इस लेख में हमने जाना हैं, की Arjun ke pita ka naam kya tha. उम्मीद है, कि अर्जुन से जुड़ी हुई सभी जानकारियाँ आपको मिल पायी होंगी।
यदि आप इस प्रकार के अन्य विषयों पर जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो कृपया हमे कमेंट करके जरूर बताएं। जानकारी अच्छी लगी हो तो कृपया इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।
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